आइना भला कब बोलता है!

जो देखता है वैसा ही दिखता है!

क्या पहचान पाए तुम अपने अस्तित्व को?

क्या नहीं देखा तुमने किसी नकाबी व्यक्तित्व को?

सिर से पैर तक झूठ का श्रृंगार है।

न दया, न करुणा, न किसी से प्यार है।

चेहरे पर लगाकर झूठ का मुखौटा,

मैं भी हूँ आइने में झाँकता !

बेशक्ल चेहरों की असलियत को,

मैं नहीं पहचानता!

किसी अंधे जहान के मजमे का हिस्सा हूँ।

मैं भी कुछ दिनों में भूल जाने वाला किस्सा हूँ ।

मुझे रूहानी ख़ूबसूरती की तलाश है,

जो जीने का मकसद दे जाए।

कुछ तो करुँ इस दुनिया के लिए,

कि लोग मुझे भी ख़ूबसूरत कह जाएँ।

फिर से सँवार दूँ, इस ज़मीं की बहार को!

फिर से सच्चा रूप दूँ, दुनिया के निखार को!

खाली सपाट चेहरे पर, इंसानियत का रंग लूँ ,

बेइंतहा मोहब्बत के चाँद को उतार लूँ।

आइना भला कब बोलता है!

जो देखता है वैसा ही दिखता है..

आइना भला कब बोलता है!

 

आइना

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