मुस्कुराने में कोई हर्ज़ नहीं,
यह लबों पर कोई कर्ज़ नहीं।
एक मुस्कान दिन हसीन बना सकती है,
उम्मीदों के कई चिराग जला सकती है।
रूठे को मना सकती है,रोते को हँसा सकती है।
अपनेपन का एक एहसास दिला सकती है।
झूठे ही सही,ख़्वाब दिखा सकती है,
मायूस दिल का हौंसला बढ़ा सकती है।
मुस्कान को चेहरे पर सजा कर रखो,
खुशियों को दामन में बसा कर रखो।
यह कोई दौलत नहीं,जो छिन जाएगी,
विरासत की ज़मीन नहीं,जो बँट जाएगी।
हँसी पर कभी महँगाई नहीं आएगी,
जितना बाँटोगे उतनी ही बढ़ जाएगी।
फिर मुस्कुराने में कंजूसी कैसी?
ज़िंदगी जीने में हिचकिचाहट कैसी?
मुस्कुराने में कोई हर्ज़ नहीं,
यह लबों पर कोई कर्ज़ नहीं।
One response to “मुस्कान”
Very good Poem.