कभी मुझे पढ़ाया,कभी मुझे समझाया।

जब भी जीवन का पाठ मैं भूली,मुझे सब याद कराया।

आसमान को छूने के प्रयास में,कभी सँभली कभी गिर पड़ी‌।

हाथ बढ़ाकर धीरे से अपना,मेरा हौंसला बढ़ाया।

जब भी जीवन का पाठ मैं भूली,मुझे सब याद कराया। 

कभी मुझे पढ़ाया,कभी मुझे समझाया…

 

बहुत कठिन था इस जीवन के सार को समझना। 

मेरी अक्ल से परे था अपने लक्ष्य को चुनना। 

कभी तथ्यों से कभी तर्कों से, सही रास्ता चुनना सिखाया। 

जब भी जीवन का पाठ मैं भूली, मुझे सब याद कराया। 

कभी पढ़ाया, कभी मुझे समझाया…. 

 

कभी आँखें लाल थीं, कभी नम थीं।

मेरी सफलता की चाह, माँ! तुझे ज़्यादा मुझे थोड़ी कम थीं।

पाऊंँगी हर हाल में मंज़िल,पग-पग पर यकीन दिलाया। 

जब भी जीवन का पाठ मैं भूली, मुझे सब याद कराया।

कभी मुझे पढ़ाया,कभी मुझे समझाया..

 

माँ! मेरी जीवनदायिनी तेरे मार्गदर्शन से ही मैंने खुद को पाया।

गुरु की छवि हो या ब्रह्मा, तेरी छाया में पाया। 

नतमस्तक मैं ही नहीं, ब्रह्मांड ने भी शीश झुकाया।

जब भी जीवन का पाठ मैं भूली, मुझे सब याद कराया।

कभी मुझे पढ़ाया,कभी मुझे समझाया..

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