कठपुतलियाँ
कल तक हम समझते थे, मुट्ठी में हैं हमारी दुनिया। कौन हूँ मैं और कौन तू! यह वक्त ने समझा दिया। न फ़कीर मैं न तू कोई बादशाह, एक हाथ की बस उँगलियाँ। वक्त के हाथों की सब, नाचती हुई कठपुतलियाँ! आज हैं यहाँ,शायद कल नहीं होंगे। जगमगाते हुए नए चेहरे सजे होंगे। चक्र है …