आइना
आइना भला कब बोलता है! जो देखता है वैसा ही दिखता है! क्या पहचान पाए तुम अपने अस्तित्व को? क्या नहीं देखा तुमने किसी नकाबी व्यक्तित्व को? सिर से पैर तक झूठ का श्रृंगार है। न दया, न करुणा, न किसी से प्यार है। चेहरे पर लगाकर झूठ का मुखौटा, मैं भी हूँ आइने में …