कल तक हम समझते थे,

मुट्ठी में हैं हमारी दुनिया।

कौन हूँ मैं और कौन तू!

यह वक्त ने समझा दिया।

न फ़कीर मैं न तू कोई बादशाह,

एक हाथ की बस उँगलियाँ।

वक्त के हाथों की सब,

नाचती हुई कठपुतलियाँ!

आज हैं यहाँ,शायद कल नहीं होंगे।

जगमगाते हुए नए चेहरे सजे होंगे।

चक्र है चलता हुआ,

एक जगह नहीं टिक पाएगा।

किसी दूसरे की ताल पर,

थिरकता रह जाएगा।

साथ चलकर कुछ कदम,

बढ़ जाएँगी ये दूरियाँ।

वक्त के हाथों की सब,

नाचती हुई कठपुतलियाँ!

नाम मिट जाने से पहले,

छाप कोई छोड़ जा।

अहं के पिंजरे के सारे,

बंधनों को तोड़ जा।

मौसमी फूलों पर,

मँडरातीं हुई तितलियाँ।

वजूद तेरा जब तलक,

खिंचतीं रहेंगी डोरियाँ।

वक्त के हाथों की सब,

नाचती हुई कठपुतलियाँ!

कठपुतलियाँ

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