मेरी कविताएँ

मुस्कुराने में कोई हर्ज़ नहीं,
यह लबों पर कोई कर्ज़ नहीं।
एक मुस्कान दिन हसीन बना सकती है,
उम्मीदों के कई चिराग जला सकती है।

हँसी

फिर सुबह खुल के बिखरी धूप मेरे आँगन में, लगता है उसके चेहरे पर हँसी आई होगी। -डॉ कविता सिंह’प्रभा’

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हिंदी भाषा हिंद की!

हिंदी भाषा हिंद की! संस्कृत के मातृत्व से महकती, हिंदी भाषा हिंद की!   वेद-पुराण का अद्भुत-अलौकिक ज्ञान लेकर, युगों-युगों का चिरकालिक वृतांत लेकर।   प्राचीनता और नवीनता का संगम किए, साहित्य सृजन

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मुस्कान
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

मुस्कान

मुस्कुराने में कोई हर्ज़ नहीं, यह लबों पर कोई कर्ज़ नहीं। एक मुस्कान दिन हसीन बना सकती है, उम्मीदों के कई चिराग जला सकती है। रूठे को मना सकती है,रोते को हँसा सकती

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मुखौटा
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

मुखौटा

देखो-देखो कितने अद्भुत मुखौटे, भिन्न-भिन्न रंग-रूप से लुभाते मुखौटे। कितने किरदार निभाते मुखौटे, कभी हँसाते तो कभी रुलाते मुखौटे। कभी खूबसूरत तो कभी बदशक्ल दिखाते मुखौटे, कभी झूठ दिखाते तो कभी सच को

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विरासत
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

मेरी विरासत

मुझे विरासत में माँ ने दिए…. चंद ग़ज़लें,कुछ कविताएँ और मोहक लोकगीत। आज भी मेरे ज़हन ने सँभाले,जैसे हो वे मेरे मीत। याद है मुझको अपने बचपन की, नटखट से भोलेपन की। याद

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जीवन बहती धारा
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

जीवन बहती धारा

जीवन बहती धारा है। बहना प्रकृति का नियम है। निरंतर बहते जाना है। कुछ इसी बहाव के साथ बहते जाते हैं। कुछ इस धारा के प्रवाह को मोड़ नया रास्ता बनाते हैं। बूँद-बूँद

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प्रकृति
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

प्रकृति

प्रकृति है अनमोल धरोहर, वरदान है परम परमेश्वर का। उगता सूरज खिलती सुबह, महका फूल हर उपवन का। शीतल हवा के मदमाते झोंके, उत्साह बढ़ाएँ जीवन का। नदियाँ,पर्वत,बादल,सागर अद्भुत मेल रहस्यों का। हर

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चाहत के रंगीन धागे
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

चाहत के धागे

चाहत के रंगीन धागे,           आज फिर से बुन लिए। मोहब्बत की स्याही भरे,           लफ़्ज़ों के फूल चुन लिए। एहसास के कशीदों से,           ग़ज़ल के बोल गढ़ दिए। कलम की सुई

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