मेरी कविताएँ

मुस्कुराने में कोई हर्ज़ नहीं,
यह लबों पर कोई कर्ज़ नहीं।
एक मुस्कान दिन हसीन बना सकती है,
उम्मीदों के कई चिराग जला सकती है।

चाहत
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

चाहत

कभी तारों को अपने घर में सजा कर देखो, इस ज़मीं को आसमां बना कर देखो। कभी तारों को अपने घर में सजा कर देखो….. कोई मंज़िल नहीं ऐसी जिसे तुम पा ना

Read More »
कीचड़ में खिला कमल
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

कीचड़ और कमल

  कीचड़ में खिला कमल फिर भी,                 प्रभु-चरणों में शरण पाता है‌। सूर्य की स्वर्णिम किरणों से,             अप्रतिम सौंदर्य पाता है। कीचड़ का भाग्य है या कमल का? दोनों का साथ होना

Read More »
कठपुतलियाँ
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

कठपुतलियाँ

कल तक हम समझते थे, मुट्ठी में हैं हमारी दुनिया। कौन हूँ मैं और कौन तू! यह वक्त ने समझा दिया। न फ़कीर मैं न तू कोई बादशाह, एक हाथ की बस उँगलियाँ।

Read More »
आइना
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

आइना

आइना भला कब बोलता है! जो देखता है वैसा ही दिखता है! क्या पहचान पाए तुम अपने अस्तित्व को? क्या नहीं देखा तुमने किसी नकाबी व्यक्तित्व को? सिर से पैर तक झूठ का

Read More »
कविता
डॉ.कविता सिंह 'प्रभा'

मेरी माँ, प्रभा

कभी मुझे पढ़ाया,कभी मुझे समझाया। जब भी जीवन का पाठ मैं भूली,मुझे सब याद कराया। आसमान को छूने के प्रयास में,कभी सँभली कभी गिर पड़ी‌। हाथ बढ़ाकर धीरे से अपना,मेरा हौंसला बढ़ाया। जब

Read More »