फ़ासले दरमियां थोड़े कम कर दो,
गिले-शिकवे किसी हिसाब में लिख दो।
ज़िंदगी बाकी है कितनी, किसे मालूम?
हर एक लम्हे में मोहब्बत की उम्र-ए-दराज़ कर दो।
फ़ासले दरमियां थोड़े कम कर दो,
गिले-शिकवे किसी हिसाब में लिख दो।
ज़िंदगी बाकी है कितनी, किसे मालूम?
हर एक लम्हे में मोहब्बत की उम्र-ए-दराज़ कर दो।
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