मैं क्या कहूँ अपना दिल-ए-हाल,
बस मैं हूँ और ज़िंदगी का थोड़ा कर्ज़ बाकी है।
परेशां न हो दिल फ़िलहाल,
बस कुछ ही किस्तें चुकानी बाकी हैं।
मैं क्या कहूँ अपना दिल-ए-हाल,
बस मैं हूँ और ज़िंदगी का थोड़ा कर्ज़ बाकी है।
परेशां न हो दिल फ़िलहाल,
बस कुछ ही किस्तें चुकानी बाकी हैं।
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